मीडिया विमर्श के मलयालम मीडिया अंक की हो रही सराहना


भाषाई पत्रकारिता की शानदार परंपरा को रेखांकित करने के लिए किए जा रहे मीडिया विमर्श के प्रयासों के तहत आए नए अंक मलयालम मीडिया विशेषांक की देश में सर्वत्र सराहना हो रही है। अग्रणी पत्रकार लेखक और संपादक इसे एक महत्वपूर्ण प्रयास बता रहे हैं। 


शायर और लेखिका फिरदौस खान ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा है कि -"हमेशा की तरह यह अंक भी बेहद उपयोगी, सार्थक और संग्रहणीय है. यह कहना अतिश्योक्ती नहीं होगी कि यह सब प्रो. संजय द्विवेदी जी की कोशिशों और उनकी मेहनत का ही नतीजा है. संजय जी केवल हिन्दी भाषा के लिए ही समर्पित नहीं हैं, अपितु वे अन्य भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उसी लगन और निष्ठा से उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं.इससे पहले भारतीय भाषाई पत्रकारिता पर केंद्रित मीडिया विमर्श का उर्दू पत्रकारिता अंक भी शाया हो चुका है, जिसे बहुत पसंद किया गया. इसमें उर्दू पत्रकारिता के इतिहास के बारे में जानकारी शामिल थी. साथ ही उर्दू पत्रकारिता की मौजूदा हालत पर भी रौशनी डाली गई थी. मीडिया विमर्श के गुजराती पत्रकारिता अंक और तेलुगु मीडिया विशेषांक प्रकाशित भी हो चुके हैं. मलयालम चौथी भारतीय भाषा है, जिस पर मीडिया विमर्श पत्रिका का यह नया अंक आया है. इससे मलयालम पत्रकारिता के बारे में उपयोगी जानकारी मिलती है. मलयालम पत्रकारिता का 172 सालों का इतिहास है. लोक संचार से लेकर समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, रेडियो, टीवी और वेब मीडिया इसमें शामिल है.मीडिया विमर्श के इस नये शानदार अंक के लिए संजय द्विवेदी जी को बहुत-बहुत मुबारकबाद. उम्मीद है कि भविष्य में भी मीडिया विमर्श के ऐसे ही शानदार विशेषांक मिलते रहेंगे."


मीडिया प्राध्यापक और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कार्यरत श्री प्रदीप डहेरिया ने लिखा-"भारतीय भाषाओं के सम्मान का अनुष्ठान: भारतीय भाषाओं की मीडिया के यशस्वी योगदान को रेखांकित करने के लिए 'मीडिया विमर्श' निरंतर अंकों का प्रकाशन कर रहा है। इसी क्रम में इस बार का अंक 'मलयालम मीडिया विशेषांक' के रूप में प्रकाशित हो रहा है। इस अंक के अतिथि संपादक डा. सी जयशंकर बाबु (पांडिचेरी) हैं। इसके पूर्व भाषाई पत्रकारिता पर केंद्रित मीडिया विमर्श के उर्दू पत्रकारिता अंक, गुजराती पत्रकारिता अंक और तेलुगु मीडिया विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं। मलयालम चौथी भारतीय भाषा है, जिस पर 'मीडिया विमर्श' पत्रिका का नया अंक आया है।"


इसी तरह हिंदी के प्राध्यापक डा. भूपेंद्र हरदेनिया ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा- "देश की बहु चर्चित एवं भारतीय मीडिया की दिशा और दशा को जाँचती, परखती प्रभावशाली पत्रिका मीडिया विमर्श का आज मलयालम अंक प्राप्त हुआ| पत्रिका के स्वरूप को देखकर अत्यंत प्रसन्नता हुई| माखनलाल विश्वविद्यालय में अध्यापनरत, आप सब के चिरपरिचित प्रो. संजय द्विवेदी जी जिस प्रकार इस पत्रिका को भारतीय मीडिया की पहचान के रूप में पाठकों के समक्ष पहुँचा रहे हैं वह स्तुत्य है| भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूचि में उल्लेखित 22 भाषाओं में उपलब्ध मीडिया के कलेवर को लोगों तक पहुँचाने का मीडिया विमर्श का यह कार्य जितना कठिन है उतना ही चुनौतिपूर्ण है| फिर भी यह अपने उसी स्वरूप के साथ सफलता पूर्वक और निर्धारित समय पर प्रकाशित हो रही है| अभी तक अनेक अहिन्दी भाषी राज्यों की पत्रकारिता पर कई विशेषांक आ चुके हैं| मलयालम पत्रकारिता पर यह अंक भारतीय पत्रकारिता की पहचान के रास्ते का एक और मील का पत्थर है| प्रो. संजय द्विवेदी जी को पुनः हार्दिक बधाई एवं मंगलमय शुभकामना|"


पत्रकार तारा चतुर मेनन Tara Chettur Menon ने लिखा है कि- The latest special edition of Media Vimarsh Magazine is about progressive professional and critical Malayalam Media , kudos to Sanjay sir and team to bring in analysis of Malayalam language ,culture and press in present context.


पत्रकार और लेखक इंद्र भूषण मिश्र ने लिखा-"अब तक की यात्रा में मीडिया विमर्श ने अपने विभिन्न अंकों के माध्यम से बेहद सार्थक और उपयोगी सामग्री प्रस्तुत की है। भारत , भारतीयता और भाषाई समृद्धि के क्षेत्र में मीडिया विमर्श प्रशंसनीय कार्य कर रहा है। इससे पहले उर्दू, गुजराती और तेलुगु मीडिया विशेषांक प्रकाशित किया जा चुका है। जो लोगों के बीच खासा लोकप्रिय रहा। अलग - अलग भाषाओं पर केंद्रित पत्रिका का सफल प्रकाशन करना निश्चित रुप से सराहनीय पहल है। इससे हमें अपने देश की विविधता का दर्शन होगा, विविध भाषाओं की पत्रकारिता और उनके सांस्कृतिक - साहित्यिक महत्वों को करीब से समझने का मौका मिलेगा। इसके लिए मीडिया विमर्श के कार्यकारी संपादक आदरणीय संजय द्विवेदी सर और उनकी पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई और आगे के लिए अशेष शुभकामनाएं।"


सामाजिक कार्यकर्ता अनिल सौमित्र ने लिखा- "भारतीयता और भारतीय भाषाओं के अभ्युदय की दिशा में सार्थक पहल।"