दत्‍तोपंत ठेंगड़ी स्मृति शताब्दी व्याख्यानमाला प्रारंभ

वेदों में सार्वदेशिकता-सर्वसमावेशिकता विद्यमान: श्री त्रिपाठी



भोपाल, 13 नवम्बर। संस्कृत व हिन्दी के प्रकांड विद्वान पूर्व कुलपति आचार्य मिथिलाप्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि वेदों में सभी वर्ण के लोगों का वर्णन है, उन्हें सम्मान दिया गया है। वेद सबके लिये हैं। वेद मंत्रों पर सबका अधिकार है। वेदों में सार्वदेशिकता और सर्वसमावेशिकता विद्यमान है। आज के समय में वेदों का अध्ययन जरूरी है।


            श्री त्रिपाठी आज राज्य संग्रहालय में दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान द्वारा आयोजित ठेंगड़ी स्मृति शताब्दी व्याख्यानमाला के प्रारंभ में 'भारतीय वाङ्गमय में सर्वसमावेशी-सांस्कृतिक चेतना व नित्यबोध' विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने कहा कि वेद के पठन-पाठन पर किसी एक वर्ण का ही अधिकार है, यह धारणा गलत पूर्णतः गलत है। वेद मंत्रों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वेदों में सभी वर्ण के लोगों का उल्लेख मिलता है। विभिन्न प्रकार के काम करने वाले लोगों को सम्मान दिया गया है। उन्हें प्रणाम किया गया है। वेदों में यहां तक कहा गया है कि हमारी प्याऊ और भोजनशाला एक होना चाहिए व हम सभी को मित्र रूप में देखें। आज के समय में वेदों का अध्ययन जरूरी है। हमने वेदों से केवल कर्मकांड ही अपनाया है।


            उन्होंने कहा कि हमारा इतिहास व पुराण वेदों के ज्ञान का ही विस्तार है। हमारे यहां दो तरह की परंपराएं बताई गई हैं - वैदिक व लौकिक। लौकिक परंपराओं में जो लोक कथाएं हैं, उनमें वेदों का ही ज्ञान विद्यमान है। वाल्मीकि का चिंतन लौकिक है। राम कथा को लौकिक रूप में ही गाया गया है। उन्होंने कहा कि ज्ञान की कोई जाति नहीं होती और न ही कोई गोत्र होता है। ज्ञान भगवान का ही स्वरूप है और इसे हमेशा दूसरों से साझा करना चाहिए।


            श्री त्रिपाठी ने श्रीमद्भागवत गीता का उल्लेख करते हुए कहा कि दृष्टि बदलने से ही ज्ञान प्राप्त होता है। पुराने समय में वेदों को जनोन्मुखी बनाने के लिये पुराणों की रचना की गई और उन्हें संस्कृति से जोड़ा गया। उन्होंने कहा कि चेतना सभी में विद्यमान है। संस्कृति का समावेशी होना जरूरी है, क्योंकि वही मनुष्य का निर्माण करती है। उन्होंने कहा कि वेदों इस बात का भी उल्लेख है कि उच्च वर्ण में पैदा हुआ व्यक्ति वैसा आचरण व व्यवहार न करने के कारण निम्न हो  जाता है और निम्न वर्ण का व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर उच्च हो जाता है। समाज में गलती से पतित हुए व्यक्ति को सही होने के लिए वेदों में व्यवस्था है। 


            संस्थान के सचिव श्री दीपक शर्मा ने श्री ठेंगड़ी जी को याद करते हुए बताया कि उन्होंने छात्र जीवन में भोपाल में काम करते समय मजदूरों के लिये काम करने का विचार उनके मन में आया। वे इंटक से जुड़े और विभिन्न पदों पर संगठन में काम किया। बाद में भोपाल में ही उन्होंने भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की। मजदूरों के लिये कार्य करते हुए उन्होंने तीस से अधिक देशों की यात्राएं की और दुनिया भर को श्रमिक कल्याण के लिए विचार दिए।


            कार्यक्रम के प्रारंभ में संस्थान के निदेशक डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा ने विषय की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत के मौलिक ग्रंथों में सर्वसमावेशिकता है, लेकिन इस तथ्य को उपेक्षित किया जा रहा है। सभी को साथ लेकर चलने की हमारी संस्कृति सनातन काल से चली आ रही है, इसपर शोधपरक कार्य करने की आवश्यकता है।