वरिष्ठ एवं सर्व समादृत पत्रकार 'स्वदेश' इन्दौर के पूर्व प्रधान संपादक श्री जयकृष्ण गौड़ गत सोमवार को अचानक हमारे बीच से चुपचाप चले गये। भारतीय जनता पार्टी के भोपाल कार्यालय की सीढिय़ां चढ़ते-चढ़ते उन्हें हृदयाघात हुआ और वह आघात उनके प्राणलेवा सिद्ध हुआ। वे भारतीय जनता पार्टी की पत्रिका 'चरैवैती' के गत अनेक वर्षों से प्रधान सम्पादक थे। 1971 में श्री जयकृष्ण गौड़ ने 'स्वदेश' के माध्यम से राष्ट्रवादी एवं तत्ववादी पत्रकारिता में प्रवेश किया था और जीवन पर्यन्त वे उसी से जुड़े रहे। वे उसके साथ एकाकार हो गये थे। वे समग्रत: विचारों के प्रतिनिधि पत्रकार थे। इसे संयोग कहें या ध्येय से एकात्मकता कि आज के 'स्वदेश' में उनके देवलोक गमन का समाचार भी छपा है, और उनका अंतिम आलेख भी, जो उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत के 'विजयादशमी' संबोधन पर टिप्पणी करते हुए लिखा है। उनके अंतिम आलेख में उन्हीं विचारों के प्रति पूरी निष्ठा और समर्पण का शंखनाद है, जिनका वे पूरे जीवन भर जयघोष करते रहे हैं। एक ध्येयनिष्ठ पत्रकार का, संपूर्ण ध्येयनिष्ठा के साथ अपने समग्र जीवन की पूर्णाहुति जैसा ही है, यह महाप्रयाण। मानो उनका ध्येय और उनकी देह एक दूसरे के लिए ही बने हों।
औपचारिक रूप से सेवानिवृत्त की आयु पर पहुंच कर वे 'स्वदेश' दैनिक की सेवा से सेवानिवृत्त हो गये थे, किन्तु 'स्वदेश' की सेवा से उन्होंने कभी निवृत्ति नहीं ली। एक कर्मठ एवं सक्रिय जीवन के वे अप्रतिम उदाहरण थे। सतत् 49 वर्षों के पत्रकारिता जीवन में उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सुरक्षित सरकारी नौकरी छोड़ कर उन्होंने 'स्वदेश' की पत्रकारिता जैसा जोखिम भरा मार्ग पकड़ा था, जहां कदम-कदम पर चुनौतियां थी, संकट थे। ईश्वर ने भी उनकी कम परीक्षा नहीं ली, किडनी की जानलेवा बीमारी से उनके एक पुत्र की असमय मृत्यु हो गई, पुत्र को बचाने के लिये अपनी किडनी का दान करने वाली उनकी जीवन संगिनी भी अध-बीच में ही साथ छोड़ गई, आपातकाल में जेल यातना भी भोगनी पड़ी, परन्तु वे टूटे नहीं। झुके भी नहीं, 'स्वदेश' का मेरुदण्ड बन कर खड़े ही रहे। परिस्थितियां चाहे जैसी रहीं हो, उनमें से मार्ग निकालकर 'स्वदेश' के प्रबंध मंडल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर वे लगातार काम करते रहे।
आपातकाल के दिनों में मुझे भी 'स्वदेश' इन्दौर के प्रबंध का दायित्व निभाना पड़ा था, तब मैंने देखा था कि उस क्षेत्र में जनता की 'स्वदेश' से कितनी बड़ी-बड़ी अपेक्षाएं थीं, उनके साथ खड़ा होना सामान्य दायित्व नहीं था। यहां मैं 'स्वदेश' इन्दौर के प्रबंध मंडल को हार्दिक बधाई देना चाहता हूँ कि सभी विपत्तियों के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। इन्दौर के कई पुराने और अनेक वर्षों से सुस्थापित समाचार पत्र भी जड़ों से उखड़ गये, किन्तु लगभग साधनहीन 'स्वदेश' मजबूती से अभी भी खड़ा है, आखिर कुछ तो बात होगी? वह यह है कि इसमें श्री जयकृष्ण गौड़ जैसे अनेक महान व्यक्तियों का पूर्ण समर्पण एवं उनकी निस्वार्थ कार्य साधना सम्मिलित है। 'स्वदेश' भाग्यशाली है कि उसे जयकृष्ण गौड़ जैसे समर्पित कार्यकर्ता मिले और श्री गौड़ भी भाग्यशाली रहे कि उन्हें 'स्वदेश' जैसा संस्थान मिला, जिसके लिये काम करते हुए जीवन समर्पित करना भी सौभाग्य की बात है। इस रूप में वे बिरले हैं। एक यशस्वी, सफल, समर्पित, संघर्षपूर्ण और सार्थक जीवन के प्रतीक, श्रेष्ठ पत्रकार, सरल एवं विरल व्यक्तित्व के मूर्तरूप, श्री जयकृष्ण की सदा जय-जय हो। उनके चले जाने से मैं निजी तौर पर भी भीषण रिक्तता का अनुभव करता हूं, उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि।
(श्री राजेंद्र शर्मा, स्वदेश भोपाल के प्रधान संपादक हैं)